गिरीश चन्दोला
हल्द्वानी। ये तो बेजुबान है, न दर्द बता सकते है और न ही इच्छा, लेकिन इंसान ने इनकी मोहताजी को गुलामी का रूप दे डाला है। वेदों और शास्त्रो तक में बेजुबानो को इंसान के सहारे टीका बताया गया है,लेकिन आज का इंसान या तो समझ नही रहा है, इंसान बेजुबानो की मदद से खुद का पेट भरने पर आमदा है, मगर यह सीधे रुप से जुल्म ही कहा जायेगा। नगर के मलिन क्षेत्र में कबूतरबाज इन परिंदों की जान खतरे में डालकर कमाई कर रहे है। पशु, पक्षियों की सुरक्षा और उनकी देखभाल के लिए वन विभाग हर साल हजारो रूपये खर्च करने का दावा करता है, लेकिन नगर व मलिन बस्ती वाले क्षेत्रो में कबूतरबाज पर नकेल कसने के मामले में पीछे है। हार जीत को लेकर बड़ी रकम से दांव लगाया जाता है। इसने कबूतर को ठिकाने से उड़ाकर बाजी एवं शर्त लगाई जाती है। शर्त के अनुसार मासूम परिंदों को लगातार उड़ाया जाता है। जो कबूतर सबसे अधिक देर और लंबी उड़ान भर कर लौटता है उसे विजेता स्वीकारते है। यह नियम विरुद्ध खेल सुबह से लेकर देर रात तक जारी रहता है। ऐसा नही की वन विभाग को मालूम नही है, जानकर भी करवाई करने से पीछे कदम रखे हुए है।
नशे की उड़ान
कबूतरबाज मासूम परिंदों पर इस कद्र जुल्म करते है , अपनी जीत पक्की करने के इरादे से कबूतरो को नशीले पदार्थ समेत केमिकल का इंजेक्शन भी लगाया जाता है। इससे पक्षी को घण्टो तक थकावट नही होती है। नशे की हालत में वो घण्टो उड़ता रहता है। लेकिन यह इंजेक्शन उसे मौत की और धकेल रहा है। उदहारण के तौर पर जो कबूतर पांच साल जीता है यह तीन साल में ही आकाल मौत का शिकार हो जाता है। गफूर बस्ती व रेलवे लाइन के पास बसी बस्ती में कबूतरबाजो की फेहरिस्त है। जो इन मासूमो की उड़ान पर कमाई करने पर तुले हुए है। मगर इन पर लगाम तो दूर की बात , वाइल्ड लाइफ वन विभाग की टीम जाँच तक नही करती है। वहीँ वन विभाग द्वारा शातिर कबूतरबाजो पर एनिमल एक्ट 1960 के तहत पशु क्रूरता अधिनियम के तहत की कार्यवाही का प्रावधान है।
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