भुवन जोशी
हल्द्वानी। ''घोटाला करके अपना पेट और घर तो भर लिया, अब जवाब देकर क्या नोकरी से हाथ धो बैठे '' जब ऐसा नजरिया सरकारी महकमे के उन अफसरान से लेकर कर्मचारियों तक का होगा, तब वहाँ से इंसाफ की उम्मीद कैसे की जा सकती है। कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों एसडीएम कोर्ट स्थित हल्द्वानी के जिला विकास प्राधिकरण कार्यालय का है। जहाँ सुचना का अधिकार यानी आरटीआई का जवाब देने से पूरी तरह कंजूसी बरती जा रही है। बात अगर 6 माह की करे तो आरटीआई का आंकड़ा सैकड़े को पार कर रहा है, लेकिन संतुष्ट जवाब बामुश्किल दर्जनभर का भी नहीं दिया गया। यह जवाब भी उन आरटीआई के दिए गए है जिनमें दूसरे सरकारी महकमे के अफसर कसूरवार है। हल्द्वानी जिला विकास प्राधिकरण के कार्यालय में अब भी आरटीआई का ढेर लगा है, और इसका जवाब पाने के लिए आम आदमी के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी धक्के खाते फिर रहे है। जनपद नैनीताल में जिला विकास प्राधिकरण के अस्तित्व में आते ही जनता में यह आस जगी थी कि अब हमारे शहर में भी वैध कालोनियां , वैध निर्माण कार्य के साथ ही ऐसे भू-माफियाओं पर शिकंजा कसेगा जो विवादित भूमि पर सांठ-गांठ के माध्यम से इमारते खड़ी कर लेते है, लेकिन हो ठीक इसके विपरीत रहा है। अवैध इमारतों में रोक तो दूर की बात है, आरटीआई के माध्यम से मांगी गई इन अवैध निर्माणों की जानकारी तक हल्द्वानी विकास प्राधिकरण का कार्यालय उपलब्ध कराने से गुरेज कर रहा है।
निरंकुश पर अंकुश का हथियार है आरटीआई
हल्द्वानी। सरकारी महकमे में धन की बर्बादी या सुनवाई न होने के लिए आरटीआई एक बड़ा हथियार है। यह कानून उन लोगो के चेहरे बेनकाब करने के लिए कारगर है जो अपने पास साइन का अधिकार होने के बाद जनता की जगह सिर्फ अपने स्वार्थ की पूर्ति में ही लगे रहते है। विपक्ष के पुरजोर विरोध के बाद भी सुचना का अधिकार (संशोधन) बिल संसद से पारित हो चुका है। इस संशोधन के जरिये सुचना के अधिकार कानून 2005 में कई बदलाव किये गए है। जिसमे विपक्षी दलो को गंभीर आपत्तियां रही। मुख्य तौर पर इसमें केंद्र व राज्य के मुख्य सुचना आयुक्त और सुचना आयुक्त के अधिकारो में कटौती कर दी गई है।
जवाब देने के लिए समय सीमा है निर्धारित
हल्द्वानी। आरटीआई एक्ट को भ्रष्टाचार कम करने, सरकारी कामो में पारदर्शिता लाने, अधिकारीयों की जिम्मेदारी बढ़ाने और जनता को सशक्त बनाने के मकसद से लाया गया था। इसकी सबसे खास बात यह है कि सरकारी टालमटोली से बचने के लिए इसमें जनता की और से पूछे गए सवाल का जवाब निश्चित समयावधि में देने की बाध्यता भी है। आरटीआई एक्ट 2005 के तहत ये जरुरी किया गया था कि सवाल पूछे जाने पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अधिकारीयों को अपने विभाग और उनकी प्रक्रिया से जुडी जानकारियां उजागर करनी होंगी।